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मुसीबत मे भारतीय ताइक्वांडो

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भारतीय ओलंपिक संघ और देश के समस्त खेल से जुडे लोगो कि उम्मीद छोड़िये , ये एक समान्य वकील की समझ का भी उम्मीद नही पूरा कर सके । किसी भी समान्य व्यक्ति भी तर्क दे सकता है ऐसे बिना सिर पैर का काम कोई कैसे कर सकता है, किस समझ के साथ किया आईये कोशिश करते है समझने की दोनों ही तर्क परे है, श्री चेतन आनंद की चिट्ठी में कोई साफ तर्क नही है और किसी भी वकालत के ज्ञाता के पास भी शायद श्री प्रभात शर्मा की चिट्ठी का कोई तर्क हो , ऐसा लगता है कि जैसे मुकदमे की कमी हो गई है इन दोनों वकीलों को तो आपस मे ही एक दूसरे के साथ वकील - वकील खेलने लगे , टायक्वोंडो खेल को अपना कोर्ट बना लिया । लेकिन इनके वजह से देश के खिलाड़ियों का कितना नुकसान हो रहा है । एक वकील होने का बाद भि ऐसे बिना सिर पैरों की बात कोई कैसे कर सकता है ।  खैर इनके ऐसा करने का सिर्फ एक ही कारण है वो ये की ये साफ मन के नही है , पद है पर दायित्व का एहसास नहीं है, इन्हें अध्यक्ष और सचिव पद मिलने के बाद प्रतिस्ठा समझ आया पर बेहतर करने की परिक्षा नही समझ आया। ढेरों तर्क देकर प्रभात शर्मा को चेतन आनंद उन्हें सचिव पद से हट...