तूफानों में दिया जलाना - व्यापारी तरीके से हो रही ताइक्वांडो प्रतियोगिताओ के बिच खेल भावना के साथ प्रतियोगिता कराना
तूफानों में दिया जलाना - व्यापारी तरीके से हो रही ताइक्वांडो प्रतियोगिताओ के बिच खेल भावना के साथ प्रतियोगिता कराना !!
दिल्ली में आयोजित एक दिवसीय प्रतियोगिता जिसमे मात्र पच्चास रुपये ( 50 रुपये ) Rs Fifty only ( Rs 50 ) ले के अगर कोई प्रतियोगिता होती देख जिसमे खिलाड़ियों को मैडल और सर्टिफिकेट भी मिल रहे हो, दो - दो एरीना में मैच हो 10-12 रेफ़री हो , प्रतियोगिता भी स्टैण्डर्ड मैट पे हो रेफ़री और गार्ज़ियन के लिए चाय और नास्ते का इंतजाम भी हो तो यह बिल्ल्कुल आशचर्य की बात हैं |
ये बात अगर किसी भी ताइक्वांडो के खिलाड़ी से बताया जाय तो उसे यकीन नहीं होगा, वो मना करेगा पहले फिर रिपीट करेगा 50 रुपये , सिर्फ पच्चास रुपये और इसी वजह से शुरुआत में मैंने कई बार और बार बार लिखा सिर्फ 50 रुपये |
अब ऐसा क्यों हैं???? , ये अचरज की बात क्यों हैं ??? इस बात के लिए जानना जरुरी हैं की वर्तमान में क्या हो रहा हैं ? , वर्तमान में किस तरह की प्रतियोगिता होती हैं?
आज के वर्तमान समय में हिंदुस्तान में जहाँ ब्लैक बेल्ट और ताइक्वांडो की प्रत्योगिताये एक व्यापार में बदल चुकी हैं | हमारे देश में ताइक्वांडो के ढेरों राष्ट्रीय और अंतरष्ट्रीय प्रतियोगिता विधुत गति से हो रही
आज के दौर में कोई जिला स्तर का या छोटे प्रारूप में जल्दी कोई प्रतियोगिता कराना ही नहीं चाहता क्यूंकि खेल प्रतियोगिता एक बड़े व्यापार में तब्दील हो चूका हैं , इस तरह व्यापार बढ़ाया जा रहा हैं की बड़े से बड़ा व्यापारी और सेल्समेन को भी शर्म आ जाये, क्युकी उनके भी व्यापार करने का कुछ उसूल, मोरालिटी और एथिक्स होते हैं |
आज एक आयोजक कोई चैंपियनशिप करने की ठानता हैं , खिलड़ियों को एक प्रोडक्ट मानता हैं कोच और एसोसिएशन / संघ / संस्था कहे जाने वाले सिस्टम को एक चैनल पार्टनरशिप का माध्यम मानता हैं | प्रतियोगिता की तिथि तय करता हैं , सोशल मीडिया और कोच / फेडरेशन / एसोसिएशन को अपना चैनल पार्टनर बनाता हैं और पार्टिसिपेशन के लिए तय की गई रकम में उसको सबका हिस्सा फिक्स करता हैं बस फिर राष्ट्रीय / अंतरष्ट्रीय / एशिया लेवल की चैंपियनशिप की तैयारी के लिए उसका सफर शुरू हो जाता हैं | किसी कंपनी के काल सेंटर की तरह विभिन्न कोच और एसोसिएशन से कांटेक्ट किया जाता हैं उसको बार बार संपर्क कर के ढेरों बच्चो की एंट्री कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाता हैं, ट्रैकसूट, बैग से ले कर के होटल में पार्टी और बहुत कुछ एक इंसेटिव के रूप में देने का प्रावधान सामने रख दिया जाता हैं |
मोस्ट एक्टिव टीम, बेस्ट डिसिप्लिन टीम, बेस्ट विमेंस टीम इत्यादि ना जाने कितनी सारी ट्रॉफी भी फिक्स हो जाती हैं और प्रतियोगिता में सभी लोगों को बाट भी दी जाती हैं | हद इस बात की हैं सभी बच्चों को मैडल मिले इस लिए एक फ्रेशर केटेगरी भी जिसमे सभी को मैडल मिले इसका प्रावधान भी बना दिया जाता हैं |
ऐसी चैंपियनशिप में खेलने के लिए बच्चो को जो मैसेज दिया जाता हैं उसका उल्लेख करना नहीं चाहूंगा बस इस सन्दर्भ में यही कहना चाहूंगा की ये लोग बस बच्चो को, नौजवान खिलाड़िओं को बरग़ला के आंतकवादी या कश्मीर में पत्थर फेकने वाला नौजवान जैसा नहीं बना रहे वर्ना सब कुछ वैसे ही कर रहे हैं जैसा की इस देश में कुछ घृणित लोग जिहाद, जय श्री राम का नारा लगवा के गलत काम कर रहे हैं जिसको हम लोग आज कल "मॉब लिंचिंग " के नाम से सुन रहे हैं |
प्रतियोगिता संपन्न होने के बाद आयोजक अपने साथियो का धन्यवाद करते हैं , अगली बार और भीड़ कैसे इकठ्ठा हो और कमाई कैसे हो इसका मनन भी करता हैं |
विभिन्न स्कूल में प्रशिक्षण दे रहे कोच किसी ना किसी ट्रॉफी के साथ स्कूल में पहुंचते , बच्चो के मैडल भी होते हैं अभी स्कूल भी खुश होता हैं अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया पोर्टल पे इसे वायरल करता हैं. बच्चो के पेरेंट्स भी ख़ुश होते हैं छाती चौड़ी करते हैं अपना अपने समाज में.
अख़बार वाले को न्यूज़ दे दी जाती हैं, जिसमे बताया जाता हैं की फलां स्कूल / कॉलेज से फला बच्चो का अंतरष्ट्रीय / राष्ट्रीय चैंपियनशिप में चयन, इतने बच्चे भारतीय टीम में इतनी उपलब्धि की बखान की बस चले तो स्कूल, कॉलेज राष्ट्रपति जी से मौलाना आज़ाद ट्रॉफी, द्रोणाचार्य, अर्जुन अवार्ड सब ले ले , लेकिन कैसे बताये की फ्रेशर केटेगरी क्या हैं , मैडल तो सभी को मिले हैं, बच्चे की उम्र छुपा दी हैं , दवाई भी खिलाई हैं और ये सब बात ना खुले इसी लिए कुछ दिन तक फेसबुक , व्हाट्सप्प , इंस्टाग्राम पे खूब ख्याति बटोर कर चुप हो जाते हैं और आखिर कर अब नये प्रतियोगिता की फिर से तैयारी भी करनी हैं |
हमारे बनारस में एक पुरानी लोक कहावत भी हैं - पैसा हज़म और खेला ख़त्म ||
देश में मंदी की मार व्यापक रूप से हो रही प्रतियोगिता कराने वाले व्यापार पर बल्ल्कुल भी नहीं दिख रहा हैं और अभी तक सोशल मिडिया से कलेक्ट की गई ढ़ेरो डेटा के एविडेंस पे सबके सामने रखना चाउंगा की साल 2018-2019 में ताइक्वांडो के विभिन्न इवेंट्स में पार्टिसिपेट करने की एंट्री फीस का कलेक्शन 5 करोड़ के ऊपर जा चूका हैं.
अब वर्तमान समय में प्रतियोगिता की स्थिति और वर्णन पूरा हो चूका हैं तो क्या ये सच में अचरज की बात नहीं हैं सिर्फ 50 रुपये चार्ज करके उस तरीके , उन सुविधा के साथ प्रतियोगिता कराना जो की लोग राष्ट्रीय और अंतरष्ट्रीय के नाम पर करते हैं , जिसमे लोग 2000 से लेकर 5000 तक एंट्री फीस के नाम पे खिलाड़ी से चार्ज करते हैं |
अब साहसी और साफ नियत इस के प्रतियोगिता के बारे में क्या लिखा जाय और इसको क्या सिरसक दिया जाये मुघे कुछ भी उपायुक्त सुझा नहीं बस बचपन पढ़ा हुआ याद आ गया - आधियो में दिया जलाना, याद आ गया वो कहानी की जब जंगल में आग लगी तब सारे जानवर अपने जान बचाने के लिए भाग रहे थे और छोटी सी एक चिड़िया अपनी चोंच में बार बार पानी भर के जंगल की आग बुझाने की कोशिश कर रही थी ; याद आ गया जब श्री राम चंद्र जी श्री लंका का पुल बना रहे थे तब कैसे एक गिलहरी बार बार समुद्र में कूदता और अपने शरीर में लगे हुए बालू से पुल पुल बनाने मे yogdan......... ये सब इस लिए याद आ गया क्यूंकि आज के इस व्यापारी तरीके से प्रतियोगिता कराने वाले युग में जहाँ व्यापार में लिप्त लोग इस तरह की प्रतियोगिता को कभी सफलता पूर्वक संपन्न नहीं होने देना चाहते , जहाँ लोग इस प्रकार की इनिसिएटिव को को विफल करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते वहां खेल और खिलाड़िओं के भलाई के लिए इस तरह काम करना वाकई तूफानों में दिया जलाने से कम नहीं हैं |
आज जहाँ दुनियां छोटी से छोटी उपलब्धि के क्रेडिट लेने के चक्कर में परेशान हैं वही इस प्रतियोगिता के संपन्न होते समय सभी लोगों को स्टेज पे बुला कर उनके द्वारा किया हुआ विशिष्ट योगदान का उल्लेख करते हुए उनका धन्यवाद दिया जाता हैं |
यह प्रतियोगिता सभी ईमानदार लोगों के लिए आगे आने के लिए एक नज़ीर हैं, खेल को खेल भावना से भरे रखने का का एक जीता जगाता मिशाल हैं और एक सवाल भी हैं की जो लोग ईमानदार हैं वो इस तरह की प्रतियोगिता क्यों नहीं करते हैं ?
दिल्ली में आयोजित एक दिवसीय प्रतियोगिता जिसमे मात्र पच्चास रुपये ( 50 रुपये ) Rs Fifty only ( Rs 50 ) ले के अगर कोई प्रतियोगिता होती देख जिसमे खिलाड़ियों को मैडल और सर्टिफिकेट भी मिल रहे हो, दो - दो एरीना में मैच हो 10-12 रेफ़री हो , प्रतियोगिता भी स्टैण्डर्ड मैट पे हो रेफ़री और गार्ज़ियन के लिए चाय और नास्ते का इंतजाम भी हो तो यह बिल्ल्कुल आशचर्य की बात हैं |
ये बात अगर किसी भी ताइक्वांडो के खिलाड़ी से बताया जाय तो उसे यकीन नहीं होगा, वो मना करेगा पहले फिर रिपीट करेगा 50 रुपये , सिर्फ पच्चास रुपये और इसी वजह से शुरुआत में मैंने कई बार और बार बार लिखा सिर्फ 50 रुपये |
अब ऐसा क्यों हैं???? , ये अचरज की बात क्यों हैं ??? इस बात के लिए जानना जरुरी हैं की वर्तमान में क्या हो रहा हैं ? , वर्तमान में किस तरह की प्रतियोगिता होती हैं?
आज के वर्तमान समय में हिंदुस्तान में जहाँ ब्लैक बेल्ट और ताइक्वांडो की प्रत्योगिताये एक व्यापार में बदल चुकी हैं | हमारे देश में ताइक्वांडो के ढेरों राष्ट्रीय और अंतरष्ट्रीय प्रतियोगिता विधुत गति से हो रही
आज के दौर में कोई जिला स्तर का या छोटे प्रारूप में जल्दी कोई प्रतियोगिता कराना ही नहीं चाहता क्यूंकि खेल प्रतियोगिता एक बड़े व्यापार में तब्दील हो चूका हैं , इस तरह व्यापार बढ़ाया जा रहा हैं की बड़े से बड़ा व्यापारी और सेल्समेन को भी शर्म आ जाये, क्युकी उनके भी व्यापार करने का कुछ उसूल, मोरालिटी और एथिक्स होते हैं |
आज एक आयोजक कोई चैंपियनशिप करने की ठानता हैं , खिलड़ियों को एक प्रोडक्ट मानता हैं कोच और एसोसिएशन / संघ / संस्था कहे जाने वाले सिस्टम को एक चैनल पार्टनरशिप का माध्यम मानता हैं | प्रतियोगिता की तिथि तय करता हैं , सोशल मीडिया और कोच / फेडरेशन / एसोसिएशन को अपना चैनल पार्टनर बनाता हैं और पार्टिसिपेशन के लिए तय की गई रकम में उसको सबका हिस्सा फिक्स करता हैं बस फिर राष्ट्रीय / अंतरष्ट्रीय / एशिया लेवल की चैंपियनशिप की तैयारी के लिए उसका सफर शुरू हो जाता हैं | किसी कंपनी के काल सेंटर की तरह विभिन्न कोच और एसोसिएशन से कांटेक्ट किया जाता हैं उसको बार बार संपर्क कर के ढेरों बच्चो की एंट्री कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाता हैं, ट्रैकसूट, बैग से ले कर के होटल में पार्टी और बहुत कुछ एक इंसेटिव के रूप में देने का प्रावधान सामने रख दिया जाता हैं |
मोस्ट एक्टिव टीम, बेस्ट डिसिप्लिन टीम, बेस्ट विमेंस टीम इत्यादि ना जाने कितनी सारी ट्रॉफी भी फिक्स हो जाती हैं और प्रतियोगिता में सभी लोगों को बाट भी दी जाती हैं | हद इस बात की हैं सभी बच्चों को मैडल मिले इस लिए एक फ्रेशर केटेगरी भी जिसमे सभी को मैडल मिले इसका प्रावधान भी बना दिया जाता हैं |
ऐसी चैंपियनशिप में खेलने के लिए बच्चो को जो मैसेज दिया जाता हैं उसका उल्लेख करना नहीं चाहूंगा बस इस सन्दर्भ में यही कहना चाहूंगा की ये लोग बस बच्चो को, नौजवान खिलाड़िओं को बरग़ला के आंतकवादी या कश्मीर में पत्थर फेकने वाला नौजवान जैसा नहीं बना रहे वर्ना सब कुछ वैसे ही कर रहे हैं जैसा की इस देश में कुछ घृणित लोग जिहाद, जय श्री राम का नारा लगवा के गलत काम कर रहे हैं जिसको हम लोग आज कल "मॉब लिंचिंग " के नाम से सुन रहे हैं |
प्रतियोगिता संपन्न होने के बाद आयोजक अपने साथियो का धन्यवाद करते हैं , अगली बार और भीड़ कैसे इकठ्ठा हो और कमाई कैसे हो इसका मनन भी करता हैं |
विभिन्न स्कूल में प्रशिक्षण दे रहे कोच किसी ना किसी ट्रॉफी के साथ स्कूल में पहुंचते , बच्चो के मैडल भी होते हैं अभी स्कूल भी खुश होता हैं अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया पोर्टल पे इसे वायरल करता हैं. बच्चो के पेरेंट्स भी ख़ुश होते हैं छाती चौड़ी करते हैं अपना अपने समाज में.
अख़बार वाले को न्यूज़ दे दी जाती हैं, जिसमे बताया जाता हैं की फलां स्कूल / कॉलेज से फला बच्चो का अंतरष्ट्रीय / राष्ट्रीय चैंपियनशिप में चयन, इतने बच्चे भारतीय टीम में इतनी उपलब्धि की बखान की बस चले तो स्कूल, कॉलेज राष्ट्रपति जी से मौलाना आज़ाद ट्रॉफी, द्रोणाचार्य, अर्जुन अवार्ड सब ले ले , लेकिन कैसे बताये की फ्रेशर केटेगरी क्या हैं , मैडल तो सभी को मिले हैं, बच्चे की उम्र छुपा दी हैं , दवाई भी खिलाई हैं और ये सब बात ना खुले इसी लिए कुछ दिन तक फेसबुक , व्हाट्सप्प , इंस्टाग्राम पे खूब ख्याति बटोर कर चुप हो जाते हैं और आखिर कर अब नये प्रतियोगिता की फिर से तैयारी भी करनी हैं |
हमारे बनारस में एक पुरानी लोक कहावत भी हैं - पैसा हज़म और खेला ख़त्म ||
देश में मंदी की मार व्यापक रूप से हो रही प्रतियोगिता कराने वाले व्यापार पर बल्ल्कुल भी नहीं दिख रहा हैं और अभी तक सोशल मिडिया से कलेक्ट की गई ढ़ेरो डेटा के एविडेंस पे सबके सामने रखना चाउंगा की साल 2018-2019 में ताइक्वांडो के विभिन्न इवेंट्स में पार्टिसिपेट करने की एंट्री फीस का कलेक्शन 5 करोड़ के ऊपर जा चूका हैं.
अब वर्तमान समय में प्रतियोगिता की स्थिति और वर्णन पूरा हो चूका हैं तो क्या ये सच में अचरज की बात नहीं हैं सिर्फ 50 रुपये चार्ज करके उस तरीके , उन सुविधा के साथ प्रतियोगिता कराना जो की लोग राष्ट्रीय और अंतरष्ट्रीय के नाम पर करते हैं , जिसमे लोग 2000 से लेकर 5000 तक एंट्री फीस के नाम पे खिलाड़ी से चार्ज करते हैं |
अब साहसी और साफ नियत इस के प्रतियोगिता के बारे में क्या लिखा जाय और इसको क्या सिरसक दिया जाये मुघे कुछ भी उपायुक्त सुझा नहीं बस बचपन पढ़ा हुआ याद आ गया - आधियो में दिया जलाना, याद आ गया वो कहानी की जब जंगल में आग लगी तब सारे जानवर अपने जान बचाने के लिए भाग रहे थे और छोटी सी एक चिड़िया अपनी चोंच में बार बार पानी भर के जंगल की आग बुझाने की कोशिश कर रही थी ; याद आ गया जब श्री राम चंद्र जी श्री लंका का पुल बना रहे थे तब कैसे एक गिलहरी बार बार समुद्र में कूदता और अपने शरीर में लगे हुए बालू से पुल पुल बनाने मे yogdan......... ये सब इस लिए याद आ गया क्यूंकि आज के इस व्यापारी तरीके से प्रतियोगिता कराने वाले युग में जहाँ व्यापार में लिप्त लोग इस तरह की प्रतियोगिता को कभी सफलता पूर्वक संपन्न नहीं होने देना चाहते , जहाँ लोग इस प्रकार की इनिसिएटिव को को विफल करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते वहां खेल और खिलाड़िओं के भलाई के लिए इस तरह काम करना वाकई तूफानों में दिया जलाने से कम नहीं हैं |
आज जहाँ दुनियां छोटी से छोटी उपलब्धि के क्रेडिट लेने के चक्कर में परेशान हैं वही इस प्रतियोगिता के संपन्न होते समय सभी लोगों को स्टेज पे बुला कर उनके द्वारा किया हुआ विशिष्ट योगदान का उल्लेख करते हुए उनका धन्यवाद दिया जाता हैं |
यह प्रतियोगिता सभी ईमानदार लोगों के लिए आगे आने के लिए एक नज़ीर हैं, खेल को खेल भावना से भरे रखने का का एक जीता जगाता मिशाल हैं और एक सवाल भी हैं की जो लोग ईमानदार हैं वो इस तरह की प्रतियोगिता क्यों नहीं करते हैं ?







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