आखिर कब कब होंगे गणतंत्र हमारे देश के खेल संघ

हाल ही मे हम सभी देशवाशियों ने 74वा गणतंत्र दिवस मनाया पर आजादी के इतने वर्षो बाद भी हम कितने गणतंत्र हो पाए हैं विशेषकर हमारे देश मे खेल प्रशासन कितना गणतंत्र हैं |

हमारे देश मे जितने भी खेल कूद की संस्थाएं हैं कितनी नियमो का पालन करती हैं, खेल संघो और उनके प्रशाशनिक अधिकारियो मे कितनी खेल भावना हैं, व्यवस्थाएं कितनी गणतंत्र हैं आज देश मे सिर्फ खेल प्रेमियों क़ो नहीं सभी देश वाशियों क़ो सोचना चाहिए |

ओलम्पिक मे व अन्य ढेरो अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता मे देश का नाम रौशन करने वाले खिलाड़ी गणतंत्र दिवस के कुछ दिन पहले अचानक से धरना पर बैठ जाते हैं, जिसको एक राजनैतिक मोड़ देने की भी पूरी कोशिश होती हैं लेकिन धरने पर बैठे पहलवान इससे साफ मना कर देते हैं और राजनैतिक लोगो से उचित दुरी इस मुद्दे पर रखते हैं |

पहलावानों ने कुस्ती संघ के अध्यक्ष श्री ब्रिजभूषण शरण सिंह पर गंभीर आरोप लगाए व खेल मंत्रालय से गुजारिश करी क़ो वों फेडरेसन क़ो भंग कर, मंत्रालय के अंदर डाइरेक्ट रख संचालन करें | कुछ ही दिनों मे पहलवानो ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के आश्वाशन पर अपना धरना ख़त्म भी किया और खेल मंत्रालय और सरकार इस मसले पर निष्पक्ष जाँच और निर्णय का पूरा भरोसा भी जताया |



इस पूरी घटना पर एक नजर डाले तो भारतीय कुस्ती संघ का आखिरी चुनाव फ़रवरी 2019 मे हुवा था और नियम के अनुसार सभी चुने हुए व्यक्तियों का कार्यकाल फ़रवरी 2023 मे समाप्त हो जाता हैं, नियम के अनुसार 12 साल लगातार अध्यक्ष बनने के बाद, संघ के अध्यक्ष ब्रिज भूषण शरण सिंह दुबारा चुनाव भी नहीं लड़ सकते हैं और देश मे क़ोई भी व्यक्ति अगर किसी के साथ क़ोई अन्याय करता हैं, कुछ गलत कार्य करता हैं तो क़ानून के दरवाजे उसके लिए हमेशा खुले हैं फिर यह सवाल बहुत ही गंभीर बन जाता हैं की पहलवानो क़ो इन दो मुद्दों के लिए आखिर क्यों धरने पर पर बैठना पड़ता हैं |



इस घटना क़ो सभी अपने अपने दृश्टिकोण से देख रहे हैं, सभी की अपनी सोच और काल्पनिक छमता के अनुसार इस घटना क़ो देखने का पूरा हक़ भी हैं है लेकिन एक दृष्टिकोण खेल भावना के तहत भी होनी चाहिए, हमारी व्यवस्था धरातल पर कितनी गणतंत्र हैं इसका भी अवलोकन कर हमें इस घटना के हर पहलू क़ो देखना चाहिए |

एक महीने बाद 12 वर्ष अपने लगातार तीन टर्म पूरा करने के बाद,अपने अधिकतम कार्यकाल क़ो पूरा करने के बाद क्या ब्रिजभूषण शरण सिंह अपनी गद्दी यु ही जाने देते, या फिर अन्य शाम दाम दंड भेद अपना कर अपना वर्चस्व कायम रखते?

इससे मिलता जुलाता एक उदाहरण ताइक्वांडो फेडरेसन ऑफ इंडिया से मिलता हैं | 1999 से 2013 तक ताइक्वांडो फेडरेसन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय हरीश कुमार (आईपीएस सेवानिवृत) ने इसके बाद आम चुनावों मे ताइक्वांडो फेडरेसन ऑफ इंडिया की अध्यक्ष का पद अपनी पत्नी श्रीमती रेनू महंत क़ो दे दिया, खुद एक नया पद चेयरमैन बना उस पर आशीन हो गए और उस समय वार्षिक कार्यकारिणी बैठक मे किसी भी एक व्यक्ति ने विरोध नहीं किया | बाद सभी लोग इसके खिलाफ गए वों एक अलग बात हैं पर यह घटना खेलो मे हम कितने गणतंत्र हैं इसका साफ साफ उदाहरण हैं |

श्री जिम्मी आर जगतियानी जी जो अपने आप क़ो भारत मे ताइक्वांडो का जनक बताते हैं और हैं भी वर्ष 1999 से लखनऊ हाई कोर्ट मे ताइक्वांडो फेडरेसन का के केस लड़ रहे हैं जबकि वर्ष 1999 मे ही उन्होंने बतौर ताइक्वांडो फेडरेसन ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी लगातार चार टर्म यानी 16 वर्ष पुरे कर लिए थे |




नियम जरूर सभी अपने संविधान मे लिखें हैं पर कौन उसका पालन करने के लिए तैयार हैं, धरातल पर हम कितने गणतंत्र हैं यह इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण हैं और बहुत सारे खेल संघो मे शायद ही क़ोई अछूता हो | इस तरह का विवाद हम जुडो फेडरेसन ऑफ इंडिया मे भी देख सकते हैं, जिसका केस दिल्ली उच्च न्यायलय मे चल रहा हैं |



वर्ष 2019 मे तत्कालीन भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष श्री नरेंद्र बत्रा से एक स्पोर्ट्स समिट के दौरान ताइक्वांडो फेडरेसन मे गड़बड़ियों का जब उल्लेख किया था तो उन्होंने सब स्वीकार किया और आश्वाशन दिया की सब थीक कर देंगे पर आज भी हर राज्य मे 2 या दो से अधिक राज्य संघ हैं हमारे उत्तर प्रदेश मे चार - चार उत्तर प्रदेश ताइक्वांडो संघ हैं, और हमारे वाराणसी जिले मे भी चार चार ताइक्वांडो संघ हैं |



भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष स्वयं इस बात क़ो स्वीकार कर रहे हैं ताइक्वांडो मे किस तरह से लोगो ने व्यापार बना रखा हैं और यह व्यापार आज भी फल फूल रहा हैं क्या इस तरह अन्य खेलो मे नहीं हो रहा होगा |

अब बात पहलवानो द्वारा यौन शोषण और अन्य गंभीर आरोपों की भी कर लेते हैं, नीमतः ऐसे मामलो मामलो f.i.r. करनी चाहिए इसके बाद पुलिस और न्यायालय अपना कार्य करेंगे, न्याय दिलाने की जिम्मेदारी उनकी हो जाती है  | और इस प्रक्रिया में सब को न्याय मिल पाता है यह फिर से एक प्रश्नवाचक चिन्ह बन जाता है, फिर से सवाल उठता है कितने गणतंत्र हैं हम |

 इस संदर्भ में एक घटना का उल्लेख अगर करें जिसमें बलात्कार पीड़िता उन्नाव विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के ऊपर आवाज़ उठाई थी और लोकतंत्र और गणतंत्र के नियम अनुसार अपनी आवाज उठाई, क्या हुवा इस घटना मे इस देश मे सभी क़ो पता हैं, कैसे पीड़िता क़ो अपने पुरे परिवार क़ो गवाना पड़ा और तंग आके मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने का निर्णय लेना पड़ा |

दिल्ली मे हुए निर्भया अपराध क़ो अंजाम देने वालो क़ो कब फ़ासी मिली यह सभी इस तरह की घटनाये साबित करती हैं की लोकतान्त्रिक और गणतंत्र वाले इस व्यवस्था मे कहाँ खड़े हैं और न्याय कैसे कितने वक्त मे मिलता हैं |

इन सब बातो से यह भी साबित होता हैं की अगर पहलवान जिन्होंने देश गौरव करने के पल दिए हैं वों सही हैं तो धरने पर बैठने का उनका निर्णय अनुचित नहीं था दोनों मुद्दों पर 1. फेडरेसन क़ो भंग करने और 2. संघ के अध्यक्ष पर गंभीर शोषण के आरोपों के सन्दर्भ मे |

देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा हैं हम सभी ने अभी कल 74वॉ गणतंत्र दिवस मनाया हैं और हमें इसका निवारण कैसे हो इसकी बात करनी चाहिए |

समस्या हम सभी के सामने सब कुछ बया कर रही हैं और इसका निदान कैसे हो इस तरह की समस्या का समाधान किस प्रकार हो इस पर एक अचूक उपचार जरूर रखना चाहिए |

स्पोर्ट्स मैंनेजमेंट का छात्र होने के नाते, एक खिलाड़ी होने के नाते और एक खेल प्रशाशक होने के नाते इस मुद्दे पर मैंने अपनी बुद्धि विवेक और अनुभव का सर्वाधिक इस्तेमाल करने के निम्नलिखित नतीजे पर पंहुचा हु जिससे इस तरह की समस्याओ ना सिर्फ समाधान हो जायेगा बल्की भविष्य मे भी इस तरह की चीजे का आना न्यूनतम हो जायेगा |

किसी भी खेल संघ क़ो ईमानदारी पूर्वक, सबके हित मे सुचारु रूप से चलने हेतु इन तीन बिन्दुओ का पालन करना अति आवश्यक हैं :-

1. खेल संघो का प्रॉपर चुनाव ( प्रॉपर इलेक्शन प्रोसेस )

जिले स्तर पर से होने की प्रक्रिया का पालन होना चाहिए क्योंकि जिले के पदाधिकारी राज्य के पदाधिकारियों क़ो चुनते हैं और राज्य के पदाधिकारी राष्ट्र के पदाधिकारियों क़ो चुनते हैं |अभी हाल ही मे भारतीय ओलम्पिक संघ के चुनाव मे किस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई, कैसे सुप्रीम कोर्ट ने नये नियमो की शर्त रखी यह सभी के सामने हैं पर राज्य ओलम्पिक संघ और जिला ओलम्पिक संघ का क्या, क्या यहाँ सब थीक हैं राज्य और जिले स्तर पर, बिल्ल्कुल भी नहीं कतई नहीं जिसके बहुत सारे प्रमाण हैं | राष्ट्रीय स्तर पर बैठे सत्ता मे लोग राज्य स्तर पर इलेक्शन नहीं सल्केशन करते हैं वों अपने यस बॉस वाली टीम बनाते हैं जैसा की धरने पर बैठे पहलावानों ने मिडिया के सामने कठोर शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा की अपने गुर्गे पालते हैं........ यस मिनिस्टर कभी बॉस की खिलाफत करेंगे या स्वतंत्र विचार रख सकेंगे इस बात क़ो हर क़ोई समझ सकता हैं | ठीक यही पालिसी राज्य स्तर के पदाधिकारी जिले स्तर पर करते हैं, वों भी  इलेक्शन नहीं सलेक्शन करते हैं उन लोगो का जो उनकी हां मे हां मिला सके, उनके इशारो पर चले, उतना ही सुने जितना वों बोले और वही कहे जो वों सुनना चाहे |

अतः जिस चीज का आधार ही गलत हो, बुनियाद ही गलत तरीके से रखी जाए उसमे सही चीजों की, सही व्यवस्था की कल्पना ही हास्यास्पद हैं |

जब तक जिले स्तर से निष्पक्ष तरीके से लोकतान्त्रिक और गणतंत्र व्यवस्था का पालन कर लोग नहीं चुने जायेंगे, नीव मजबूत नहीं होंगी और उस पर मजबूत इमारत कभी नहीं बन सकता |

2. पारदर्शी गणतंत्र चयन व्यवस्था का पालन ( proper transperent selection process )

पिछले टोक्यो ओलम्पिक मे जूनियर वर्ल्ड चैंपियन निखत जरीन ने मेरीकोम जैसी भारतीय बॉक्सिंग के इतिहास मे सबसे सफल बॉक्सर क़ो चयन के लिए चुनौती देकर खेल संघो मे चयन के तरीके पे क्या जायज उंगली नहीं उठाई, तब के तत्कालीन खेल मंत्री श्री किरेन रिजीजू के कहने पर मेरीकोम और निखत के बिच एक सलेक्शन मैच भी हुवा, युवा निखत मैच हार गई पर इसके बाद सीनियर बॉक्सिंग विश्व चैंपियन बन कर अपनी योग्यता भी साबित कर दी | 

सभी खेल संघो मे एक पारदर्शी चयन प्रक्रिया निर्धारित होना चाहिए, जिस प्रकार देश संविधान से चलता हैं उसी प्रकार खेल संघो क़ो संविधान से चलना चाहिए | वर्ष 2016 के ओलम्पिक मे जाने के लिए दो बार के ओलम्पिक मैडलिस्ट सुशील पहलवान और नर सिंह यादव के बिच का जो विवाद हैं भला उसे कौन भूल सकता हैं, यह विवाद दिल्ली उच्च न्यायलय तक गया पर आज तक हम सभी खेल संघो मे चयन की व्यवस्था का एक नियंम और संविधान बनाने मे असफल रहे हैं |

वर्ष  2014 मे जब प्रधानमंत्री मोदी जी अपना लोकसभा चुनाव लड़ने के प्रचार प्रसार कर रहे थे, भ्रस्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद रखने वाले वर्तमान दिल्ली मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी वाराणसी से लोकसभा चुनाव के लिए खूब जनता के बिच मे प्रचार प्रसार कर रहे थे थीक  उसी दौरान वाराणसी मे सीनियर महिला उत्तर प्रदेश फुटबॉल टीम  का प्रशिक्षण कैम्प चल रहा था | खिलाड़ी चयनित होने के बाद कैम्प कर रहे थे और आसाम मे होने वाले राष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता हेतु तैयारी कर रहे थे | महिला खिलाड़ियों ने यौन शोषण का आरोप उत्तर प्रदेश फुटबाल संघ के महासचिव मोहम्मद शमसुद्दीन पर लगाए और क्या नतीजा हुवा, पूरी की पूरी टीम क़ो रातो रात बदल दिया | उत्तर प्रदेश फुटबॉल संघ क़ो बैन कर देना कहाँ तक उचित हैं, इससे तो शिकायत करने वालो क़ो हमेशा कोषा जायेगा उनके सहयोगियों द्वारा की शिकायत की वजह से अब किसी क़ो खेलने का मौका नहीं मिलेगा, इससे  सन्देश यह भी जाता हैं की अगर खेलना हैं तो शोषण के खिलाफ आवाज किसी कीमत पर नहीं उठानी हैं |


3. पारदर्शी वित्तीय आय और व्यय का विवरण ( ट्रांसपेरेंट फाइनसिअल ट्रांसक्शन सिस्टम )

भारतीय ओलम्पिक संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री नरेन्द्र बत्रा पर घोटाले क़ो लेकर सी बी आई का छापा, वर्ष 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के घोटाले जग जाहिर हैं, क्या घोटाले सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर ही होते हैं, राज्य और जिले मे नहीं होते अतः यहाँ भी जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सभी पर एक कड़े नियमवली का पालन करना अनिवार्य बन जाता हैं |

एक खिलाड़ी का खेल जीवन बहुत कम समय का होता हैं जिसमे उसे हर बार चैंपियन बने रहने हेतु बहुत ही परिश्रम और साधना की जरुरत होती हैं, समय बहुत अमूल्य होता हैं अतः ये तीनो बाते 1. पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया ( ट्रांसपेरेंट इलेक्शन प्रोसेस ) 2. पारदर्शी चयन प्रक्रिया (ट्रांसपेरेंट सेलेक्शन प्रोसेस ) 3. पारदर्शी वित्तीय आय - व्यव का व्यंवस्था ( ट्रांसपेरेंट फाइनेंसियल सिस्टम ) जब तक जिले से शुरू होकर राष्ट्रीय स्तर तक नहीं लागु की जाएंगी तब तक इस तरह की समस्याओ पर अंकुश लगा पाना बहुत ही मुश्किल होगा या यु कह ले की संभव ही नहीं हो सकता |



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