भारतीय खेल संघो की राजनीती

 

भारतीय खेल संघो की राजनीति मे कितना दबदबा और मसाला है वों इस बात से साफ समझी जा सकती है भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तों वों गुजरात क्रिकेट संघ के भी अध्यक्ष रहे, वर्तमान मे आसाम के मुख्यमंत्री श्री हेमंत विश्व शर्मा जी भारतीय बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष है और इसी तरह ना जाने कितने लोग है पर क्या वों उसी तरह से चुने जाते है जिस प्रकार से सांसद और विधायक चुने जाते है, क्या आम जनता या खेल से जुड़े हुए लोग उनका अवलोकन, उनके काम काज का जिक्र उसी तरह से करते है जिस प्रकार से करते है जैसे एक सांसद विधयाक का करते है तों इसका जवाब है दूर दूर तक नहीं |

लोकतान्त्रिक देश मे खेल संघो मे चुनाव व कई मामलो मे लोकतान्त्रिक व्यवस्था का धज्जिया उड़ाते हुए देखा जा सकता है पर चुकी मिडिया और लोगो के बिच मे इतनी चर्चा नहीं होती अतः यहाँ पर अक्सर जो लोग ज़्यादा ताकतवर होते है उनका बोलबाला कायम रहता है जिसे हम आम बोल चाल मे "जिसकी लाठी उसकी भैस" कहवात का सटीक पर्याय कह सकते है |

18 जनवरी 2023 क़ो ओलम्पिक मे देश क़ो पदक दिलाने वाले और तमाम अंतराष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता मे देश का नाम रौशन करने वाले एक से बढ़कर एक पहलवान जब जंतर मंतर पर भारतीय कुश्ती खेल सांघ के खिलाफ कुश्ती करने के लिए उतरे तों उन्हें मिडिया का सपोर्ट भी मिला, लोगो के बिच चर्चा भी हुई, राजनैतिक दलो मे भी चर्चा उठी पर जैसा आर्टिकल की शुरुआत मे लिखा था खेल संघो की राजनीति मे शायद उतना मसाला नहीं है इसलिए अब ये बात लगभग खो चुकी है | भारत सरकार मे खेल मंत्री श्री अनुराग ठाकुर जी ने सभी प्रमुख मिडिया के सामने उचित कार्यवाही का अस्वासन भी दिया और कमिटी बना कर एक महीने मे मामले का निपटारा, न्याय करने का पूरा भरोसा दिया पर दो महीने हो गए कुछ नहीं हुवा,आखिर क्यों इसका जवाब ना पूछता है क़ोई भी खेल प्रशंशक?

  संघो मे ऐसा क्या है की यहाँ सबसे कम भीड़ होती है चुनाव की अधिकतर मामलो मे सब कुछ निर्विरोध हो जाता है, इतना आसान हो जाता वही पर बहुत मुश्किल भी हो जाता है और खेल संघो के चुनाव क़ो ले के लोग हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटत करते है | दसको तक मामले चलते है कोर्ट मे खिलाड़ियों का कितना नुकसाना होता है क्या इसका कल्पना भी करा जा सकता है, एक खिलाड़ी का खेल जीवन बहुत अल्प होता है और उसमे अगर सही समय पर उसे मौका ना मिले तों उसका टैलेंट कभी भी सामने नहीं आ पाता और वों टैलेंट व्यर्थ चला जाता है |

हमारे देश मे जहाँ एक तरफ गाँव के सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए भी यह नियम होता है की व्यक्ति का नाम उस गांव के वोटर लिस्ट मे होना चाहिए जिस गाँव से वह चुनाव लड़ रहा हो पर राष्ट्रीय खेल महासंघो के जिला संघो मे क्या चुनाव होते भी है या फिर उन्हें ऐसे ही बना दिया जाता है और हटा दिया जाता है, किसी को भी उठा के किसी भी जिले का अध्यक्ष और सचिव बना दिया जाता है भले ही वह उस जिले का हो ना हो, उस जिले मे रहता हो या ना रहता हो.

हमारे देश मे दूसरी तरफ जहाँ लोकसभा, सांसद का चुनाव लड़ने के लिए आसान व्यवस्था है मोदी जी गुजरात के होते हुए भी वाराणसी से चुनाव लड़ सकते है पर हमारे देश के राष्ट्रीय खेल महासंघो के चुनाव मे बहुत कठिनाई है थीक उल्टा है, राष्ट्रीय खेल महसघो का चुनाव लड़ने के लिए व्यक्ति को किसी एक राज्य का अध्यक्ष अथवा सचिव होना जरुरी है |

देश मे पंचायत से ले के लोकसभा तक का नियम तों समझा जा सकता है और इसके पीछे का तर्क भी की पंचायत का सरपंच जिसे पंचायत मे रह कर काम करना है अगर वह उस पंचयात के वोटर लिस्ट मे नहीं है तों वहा भला वों क्या काम करेगा, कैसे रोजमर्रा की समस्या को जानेगा, उसका निदान करेगा और सांसद के रूप मे व्यक्ति को संसद मे आवाज उठानी पडती है, उसकी जिम्मेदारी अलग है परन्तु खेल संघो के चुनाव मे उलटे नियम का सिर्फ एक ही तर्क है परिवारवाद को बढ़वा देने, अपना एकक्षत्र साम्राज्य स्थापित करना, एक व्यक्ति अगर एक जिले का ना तों निवासी है ना उस जिले मे रह रहा हो तों भला क्यों उसे उस जिले का अध्यक्ष व सचिव बनाया जा रहा है |

जब एक खिलाड़ी अपने पीक पर होता है तों उसे सिर्फ अवसर चाहिए होता है जो उसे इन संघ और महासंघ के चक्कर मे प्राप्त नहीं होता | जंतर मंतर पर धरने पर बैठे पहलवानो द्वारा सिर्फ यौन शोषण का आरोप नहीं लगा वों कई आरोप मे से एक था | पर चर्चा सिर्फ यौन शोषण का हो रहा है,  विभिन्न इंटरव्यू मे ओलम्पिक पदक विजेता बजरंग पुनिया ने कई सारे बाते कहीं जिसमे खेल संघ का प्रशाशन और अवसर की बात प्रमुख रही है |

श्री बजरंग पुनिया और पहलवानो ने कई बार यह बात भी कहीं की भारतीय कुश्ती महासंघ क़ो भंग कर देना चाहिए सरकार अपने हाथ मे ले ले महासंघ, वर्तमान अध्यक्ष श्री ब्रिजभूषण शरण सिंह जी का 12 वर्ष का कार्यकाल ख़त्म हो गया और नियम के अनुसार वों अब आगे चुनाव नहीं लड़ सकते इस पर पहलवानो ने एक स्वर मे कहा की क्या फर्क पड़ता है वों नहीं रहेंगे तों उनकी जगह उनका ही क़ोई भरोसेमंद व्यक्ति रहेगा, वही होगा जो बृजभूषण शरण जी चाहेंगे | उन्ही की मनमर्जी चलेगी पर जब एक छोटे से पंचायत चुनाव के लिए सरकारी तंत्र शामिल होता है, पंचायत चुनाव की निगारानी होती है कितना मुश्किल होता है अमूमन चुनाव विभिन्न प्रत्याशी के बिच मे पर क्या एक जिला खेल संघ मे ऐसा होता है, अमूमन जिला खेल संघो मे चुनाव एक औचारिकता मात्र होती है, किस नियम क़ानून का पालन होता है पता नहीं, क्या सभी जिला खेल संघ किसी संविधान का पालन करते है? वर्ष 2011 मे जब अजय माकान स्पोर्ट्स कोड लाये तों किसी मिडिया या व्यक्ति ने इस बात क़ो पूर्ण रूप से समझा की उस स्पोर्ट्स कोड का विरोध अधिकतर खेल संघो ने क्यों किया और दबाव मे आ कर केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकान जी क़ो स्पोर्ट्स कोड मे बहुत सारे बदलाव लाने पड़े | अजय माकान द्वारा सूचना का अधिकार खेल संघो मे लाना एक सबसे बड़ा मुद्धा था|

आज  खिलाड़ियों द्वारा दिया जा रहा धरना, एक यौन शोषण के आरोप, पार्टी क़ो राजनीति, किसी पार्टी द्वारा पोषित, रंजिश व साजिश इत्यादि के रूप मे मुख्य रूप से देखा जा रहा है पर इसे खेल के सन्दर्भ मे मुख्य रूप से देखा जाना चाहिए |

पहलावान खिलाड़ियों के सन्दर्भ मे खेल प्रशासन की क्या क्या कमिया गिना रहे है और उस पर कुश्ती संघ के अध्यक्ष खिलाड़ियों की क्या क्या कमिया कह रहे है जिससे एक मजबूत खेल संघ का स्थपना हो सके पुरे देश मे इस पर सबको मुख्य रूप से चर्चा करनी चाहिए |

कुश्ती संघ ने बीबीसी न्यूज़ व अन्य कई मिडिया मे बार बार बयान दिए की नेशनल कैम्प मिलने के लिए उन्होंने सलेक्शन पालिसी मे बदलाव किये थे जिसके वजह से या तों ओपन नेशनल या ऑफिसियल नेशनल मे खेलना और मैडल लाना जरुरी होगा | ये धरने पर बैठे पहलावान नेशनल लड़ना नहीं चाहते, क्या इस मुद्दे पर पहलवान से क्या किसी ने विस्तार पर बात करी, सिर्फ कुश्ती मे ही नहीं सभी खेलो मे सलेक्शन की पॉलिसी पर क्या बहस हुई,  क्या एक प्रॉपर सलेक्शन पॉलिसी की पारदर्शी व्यवस्था बनाने की मुहीम हुई जिसमे सभी के हित मे, सबको समान अवसर मिले इस बारे मे चर्चा हुई |

वर्ष 2016 के ओलम्पिक मे भी नरसिंघ और 2 बार के ओलम्पिक पदक विजेता सुशील कुमार के बिच देश का प्रतिनिधित्व करने का प्रकरण सभी क़ो याद होगा, सलेक्शन का यह मुद्दा न्यायलय तक पंहुचा, अतः कुश्ती ही नहीं सभी खेल संघो मे सलेक्शन पॉलिसी पारदर्शी होनी चाहिए, सलेक्शन के नियम सभी क़ो पता होनी चाहिए | 

जब देश के प्रधानमंत्री मंत्री जी साल  2014 मे लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे वाराणसी मे उसी वक्त अन्ना हज़ारे जी के आंदोलन से भ्रस्टाचार के विरोध मे वों भी वाराणसी से चुनाव लड़ रहे थे तब उत्तर प्रदेश सीनियर महिला फुटबॉल टीम वाराणसी के सिगरा स्टेडियम मे कैम्प कर रही थी और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने पर पूरी की पूरी टीम रातो रात बदल दी, पूरी टीम जो हफ्तों से कैम्प कर रही थी उन्हें एक रात मे हटा दिया सिर्फ एक लड़की के आवाज उठाने के कारण, इस भरस्टाचार पर क्या हुवा डिटेल मे समझा जा सकता है :-


मैंने इसका उल्लेख अपने पूर्व के ब्लॉग आखिर कब होंगे गणतंत्र हमारे देश के खेल संघ मे भरपूर किया है |


देश के सभी खेल संघो का सभी क़ो एक सामान अवसर देने वाला व्यवस्था का नियम देश के राष्ट्रीय स्पोर्ट्स कोड मे होना ही चाहिए  ताकि ऐसे धरने कम से कम इस कारण से ना हो, आज सरकार क़ो यह एक अवसर के रूप मे लेना चाहिए सभी खेल संघो मे पारदर्शी सलेक्शन व्यवस्था क़ो लागु करने के लिए, आखिर बहुत सारी योजनाओं के माध्यम से खिलाड़ियों के लिए सरकार क्या नहीं कर रही है | वर्ष 2014 से टारगेट ओलम्पिक पोडियम स्कीम के माध्यम से सरकार खिलाड़ियों वों सब कुछ दे रही है जो उन्हें चाहिए, सरकार के तरफ से खिलाड़ियों के लिए किसी भी प्रकार की क़ोई कमी नहीं रखी जा रही है अतः आज सरकार क़ो यह सुनिश्चित करना चाहिए की सरकार द्वारा जो उच्च स्तरीय व्यवस्था दी जा रही है वों सही और सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों क़ो मिले |


पहलावानों का आरोप यह भी था पहले उन्हें स्पोंसर डायरेक्ट मिलते थे अब फेडरेसन के माध्यम से मिलेंगे, हमारे देश मे घोटाला बहुत बड़ा मुद्धा हमेशा रहा है प्रधानमंत्री राजीव गाँधी जी ने कहा था की केंद्र से एक रूपया भेजा जाता है तों जिसके लिए भेजा जाता है उसे 15 पैसे ही मिलते है, इस पर सांसद भवन मे प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई जी और मोदी जी भी काफ़ी बोल चुके है अतः पारदर्शिता के साथ वित्तीय मैंनेजमेंट का एक कानून निश्चित रूप से होना चाहिए | हमारा देश शायद ही भूल सकेगा जो घोटाले कॉमनवेल्थ (CWG) मे हुए जिसे मोदी जी वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के समय कई बार उल्लेखित किये, खेलो मे घोटाले के ना जाने कितने ही समाचार देश मे जग जाहिर है और आज अगर हम देश मे खेलो का एक मजबूत तंत्र चाहते है तों हमें पारदर्शी वित्तीय व्यवस्था का क़ानून निश्चित रूप से होना चाहिए वों सिर्फ राष्ट्रीय फेडरेसन या राज्य खेल संघ मे नहीं बल्की जिला खेल संघो मे भी |

भ्रस्टाचार, काले धन मे कीर्तिमान स्थापित करने वाले हमारे देश मे अगर पारदर्शिता के साथ सख्त वित्तीय व्यवस्था का क़ानून स्थापित अगर नहीं होगा तों लोंगो क़ो जहा मौका मिलेगा वों भ्रस्टाचार का क़ोई मौका नहीं छोड़ेगे |


कुश्ती संघ के अध्यक्ष श्री ब्रिज भूषण शरण सिंह ने कई बार कई मिडिया चैनलों पर दावा किया है की यह धरना खिलाड़ियों का नहीं है इसके पीछे उद्द्योगपति, राजनैतिक लोग है उन्होंने खुल के दिपेन्द्र हुड़्डा जी का नाम लिया, उन्होंने कहा की दिपेन्द्र हुड़्डा क़ो वों पहली बार हरा कर कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद पर बने थे और उसके बाद दो बार निर्विरोध बने और दिपेन्द्र हुड़्डा जी हरियाणा कुश्ती संघ से ताल्लुक रखते है और कुछ महीने पहले फेडरेसन के नियम ना मानाने के वजह से उन्हें बाहर किया गया है और वों कुश्ती संघ मे अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए ऐसा कर रहे है |

हमारे देश मे खेल संघो के चुनाव मे कितने खेल होते हो इसकी जानकारी तों सभी क़ो समय समय पर मिडिया के माध्यम से मिलती ही रहती है |

हॉकी इंडिया, हॉकी फेडरेसन ऑफ इंडिया, टेबल टेनिस संघ  का विवाद, ताइक्वांडो फेडरेसन ऑफ इंडिया का विवाद, बॉक्सिंग इंडिया और बॉक्सिंग फेडरेसन ऑफ इंडिया का विवाद, स्कूल गेम्स फेडरेसन ऑफ इंडिया का विवाद व तमाम इस तरह के खेल संघो के विवाद लम्बे समय तक कोर्ट मे चलते है और खेल मंत्रालय क़ो इन विवाद के वजह से इन खेल संघो की मान्यता रद्द करनी पडती है और इसका खामियाजा खिलाड़ियों क़ो कितना भुगतना होता है, ये क़ोई उन खिलाड़ियों से पूछे जो अपने करियर बनाने की उम्र मे सब कुछ छोड़, सब कुछ दाँव पर लगा अपना जीवन खेल के प्रति समर्पित कर देते है और आखिर मे उन्हें कोशिश करने का जब मंच तक नहीं मिल पाता तों उन्हें कैसा लगता है, उनके साथ चुपचाप हुए इन शोषण क़ो तों वों किसी से बया तक नहीं कर पाते |

अतः खेल संघो मे पारदर्शी चुनाव व्यवस्था निश्चित रूप से लागु होनी ही चाहिए, जब भी खेल  संघ मे विवाद लोंगो क़ो नजर आता है तों सिर्फ राष्ट्रीय महासंघ मे नजर आता है पर राष्ट्रीय महासंघ बनता कैसे है इस प्रक्रिया पर भी ध्यान देने की जरुरत है, राज्य खेल संघ कैसे बनते है, जिला खेल संघ कैसे बनते है | हम सब सुनते रहते है की उचि मजबूत इमारत के लिए मजूबूत नीव की जरुरत होती है |इस वर्ष  एशियाई खेल होने है और बहुत सारे खेल जैसे ताइक्वांडो, कराटे, वॉलीबाल, हैंडबाल इत्यादि खेल संघ विवादित है 

प्रधानमंत्री मोदी जी ने लोकसभा 2014 के चुनाव मे कई बार कहा था, देश क़ो मजबूर नहीं मजबूत प्रधानमंत्री चाहिए और पूर्ण बहुमत की सरकार बना कर वों एक मजबूत प्रधानमंत्री भी बने और मजबूती के साथ फैसले किये आज देश के खेल संघो क़ो भी मजबूत बनाने की आवश्य्कता है  और यह मजबूती तब आएगी जब जिला स्तर से जिला खेल संघो मे निष्पक्ष चुनाव व्यबस्था लागु होंगी, अंग्रेजो के बाटो और राज करो की नीति बड़ी खूबसूरती के साथ देश के खेल संघो मे आज भी कायम है इसका सबसे बेहतर उदाहरण ताइक्वांडो खेल के माध्यम से समझा जा सकता है चार पुरुष और महिला वजन कैटेगारी मे देश क़ो यह खेल उतने पदक दे सकता है जितने देश ने आज तक किसी एक ओलम्पिक मे पदक नहीं जीते, टोक्यो ओलम्पिक मे हमारे देश भारत ने सर्वाधिक कुल 7 पदक जीते और इसके पहले वर्ष  2012 के ओलम्पिक मे 6 पदक जीते थे और वर्ष 2016 मे तों हमारे पदको की संख्या सिर्फ 2 रही थी|खैर देश मे खेल संघो मे चुनाव क़ो ले कर जो व्यवस्था आज के तारीख मे कायम है उसे हम ताइक्वांडो के माध्यम से समझते है  जिसका पूरा उल्लेख मैंने अपनी पिछली ब्लॉग्स मे किया है , "आखिर कब होंगे गणतंत्र हमारे देश के खेल संघ " और  "क्या होता अगर नीरज चोपड़ा ताइक्वांडो जैसे खेल क़ो चुनते"  |

1998 से लेकर आज तक ताइक्वांडो मे विवादरहित एक राष्ट्रीय खेल संघ के स्थपना नहीं हो सकी है, फेडरेसन के झगड़ो मे खिलाड़ियों का और प्रशिक्षकों का ही नहीं खेल का भी बहुत बड़ा नुकसान होता है, खेल से ज़्यादा राजनीती का माहौल बना रहता है, प्रशिक्षक ना चाहते हुए पूर्ण रूप से खेल पर खिलाड़ियों की ट्रेनिंग पर ध्यान नहीं दे पाते क्योंकि उनकी मज़बूरी होती है इस बात क़ो समझना, जानना की वों चल रही राजनीती मे किसका साथ दे किसका साथ ना दे |

खेल संघो के चुनाव मे सबसे  ज्यादा भ्रस्टाचार है, राज्य का और जिले का चुनाव कैसे हो यह तय नहीं, राज्य संघ मे अपने मन के लोंगो को राष्ट्रीय महासंघ वाले रखते है ताकि वह उनके हा मे हा मिला सके और इसी प्रकार से जिले मे राज्य संघ के पसंद के पदाधिकारी रहते है , अगर जरा से नापसंद हुए तों अंग्रेजो की बाटो और राज्य करो की नीति सक्रिय हो जाती है मामला विवादित कर जिसकी लाठी उसकी भैस बना दिया जाता है और खिलाफ जाने वाले व्यक्ति का कितना अस्तित्व बचा रहता है इसका उदाहरण ताइक्वांडो खेल से भरपूर लिया जा सकता है |









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