ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा ताइक्वांडो जैसे खेल को चुनते तो क्या होता?

नीरज चोपड़ा जी ने हाल ही सम्पन्न हुए टोक्यो ओलम्पिक मे भाला फेकने मे स्वर्ण पदक प्राप्त कर पुरे देश का मान बढ़ाया | अभिनव बिंद्रा के बाद व्यक्तिगत स्पर्धा मे ओलम्पिक स्वर्ण जितने वाले दूसरे भारतीय बने नीरज चोपड़ा जिन पर सभी देशवाशियों को नाज है |



नीरज के घर या गाँव मे कोई भी खेलो की किसी भी प्रतिस्पर्धा मे प्रतिभाग नहीं करता था स्वयं नीरज भी 13 वर्ष की उम्र मे स्टेडियम इस वजह गए क्योंकि इनका वजन अत्यधिक बढ़ गया था और  स्वास्थ्य दुरुस्त करने के लिए घर वालो ने व्यायामशाला व खेल के मैदान का अनुसरण करने को कहा जहाँ उन्होंने पानीपत के स्टेडियम मे जय चौधरी जी के  सानिध्य मे पहली बार भाला फेका और उसके बाद उन्होंने पंचकुला मे प्रशिक्षक नदीम अहमद जी के देख रेख मे  परिश्रम करना शुरू किया | नीरज ने मात्र 10 साल मे 23 वर्ष के उम्र मे सारे देश वाशियों को गर्व करने के लिए स्वर्णिम पदक जीत लिया पर क्या होता अगर नीरज भाला फेकने की जगह ताइक्वांडो जैसा प्रतिष्ठित मार्शल आर्ट करना पसंद करते जो की वर्ष 2000  से एक  ओलम्पिक खेल भी है पर इतना विवादित है की वो कभी ओलम्पियन भी ना बन बाते इस पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा हो जाता है |

नीरज भाग्यशाली रहे जो उन्हें ईमानदार प्रशिक्षक मिले और विवाद रहित एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया जो उन्हें सच्चा मार्गदर्शन और हर तरह का सपोर्ट करती रही पर उन खिलाड़ियों का क्या दोष जो नीरज की तरह ही सामान्य परिवार से आते है, स्टेडियम जाते है और ताइक्वांडो जैसे विवादित खेल को चुन लेते है और अपना जीवन ख़राब कर लेते है |

माफ़ करिये कोई खेल विवादित नहीं होता खेल के पदाधिकारी इसे विवादित बनाते है लेकिन इसमें खिलाड़ियों और प्रशिक्षको का क्या कसूर है? 

अभी हाल ही दो महीने पहले इंडिया टिवी पर तब के तत्कालीन खेल मंत्री किरेन रिजिजू जी को रजत शर्मा जी ने बुलाया था जहाँ ऐसे ही कुछ प्रकरण था



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की स्ट्रेंथ लिफिटिंग मे हरियाणा की एक खिलाड़ी ने खूब मेहनत की तथा इनके गरीब माँ बाप जो मजदूरी कर जीवन यापन करते है उन्होंने अपनी बेटी को खेलाने के लिए कर्ज भी लिया | इनकी बेटी सुनीता देवी ने अपने परिश्रम के दम पर थाईलैंड मे आयोजित विश्व स्ट्रेंथ लिफ्टिंग प्रतियोगिता मे चैंपियन भी रही  पर इस खेल का कोई भविष्य नहीं कोई सरकारी मदद नहीं, कोई आर्थिक सहयोग अथवा पुरष्कार नहीं क्युकि यह खेल ओलम्पिक खेल नहीं और भारतीय खेल मंत्रालय चाह कर के भी कुछ नहीं कर सकता ऐसा खेल मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने बताया, उन्होंने यह भी बताया की जब वह नये नये खेल मंत्री बने थे तब बैंगलोर से उन्हें एक  पावर लिफ्टिंग के खिलाड़ी ने संपर्क किया था और उन्होंने 10 लाख की राशी सैंगसन भी कर दी थी पर वह वास्तविकता मे क्रियान्वयन नहीं हो पाया नियम के वजह से, जब तक कोई खेल ओलम्पिक से एप्रूव्ड नहीं है, ओलम्पिक खेल नहीं है वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते | इस पर सुनीता ने लाइव प्रोग्राम के दौरन खेल मंत्री जी से कहा की वो और उनकी तरह अन्य खिलाड़ी भी उतनी ही मेहनत करती है जितनी मेहनत एक ओलम्पिक की खेल की खिलाड़ी पर............................. 
इस तरह से ना जाने कितने खेल है जिनमे खिलाडियों अपना खूब पसीना बहाते है और उनके घर वाले खूब पैसा भी लगते है क्योंकि इस तरह के खेल माफिया इन खेलो की ऐसी ब्रांडिंग और मार्केटिंग करते है की उसमे किसी भी भोले भाले इंसान का फ़साना लाजमी है | क्या खेल मंत्रालय को कठोर क़ानून नहीं अपनाना चाहिए जिससे इन खेल संघो पर लगाम लगे जो बड़े सपने दिखा उनका अमूल्य समय और धन नस्ट करती है  तथा सबसे बड़ी चीज भावनाओं के साथ खेलवाड़ करती है | सुनीता ने साफ कहा की अगर उसे बहुत अफ़सोस है की उसके पिता का इतना धन बर्बाद हुआ इस स्ट्रेंथ लिफ्टिंग की सच्चाई अगर उसे पता होता तो वो वह यह खेल कभी नहीं खेलती |

बात बहुत साफ और स्पष्ट है लेकिन सभी खिलाड़ियों को ये सब सच्चाई तब पता चलता है तब वह सुनीता की तरह अपना सब कुछ गवा देते है या सुनीता के परिवार वालो की तरह उनके माँ बाप अपने बच्चे को खेलाने के लिए कर्जदार बन जाते है क्युकि आज वर्तमान समय मे हमारे देश मे बहुत सारे खेल संघ ऐसे भी आ गए है जो बिना किसी मान्यता व अधिकार के अपने आगे ओलम्पिक शब्द का इस्तेमाल भी करते है तो क्या इन सब को रोकने के लिए तथा खिलाड़ियों को स्वस्थ मार्गदर्शन हेतु शख्त कदम नहीं उठाने चाहिए?? 

यह एक बात तो हो गईं जहाँ खिलाड़ियों का शोषण उन खेल संघ द्वारा किया जा रहा है जो ओलम्पिक खेल नहीं है, जो सिर्फ खेलो का व्यापार कर रहे है,  खिलाड़ियों को राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता मे प्रतिभाग कराने के नाम पर धन कमाने वाले लोगो द्वारा किया जा रहा वही पर दूसरी ओर जो ओलम्पिक खेल है, उनमे कई खेल संघो मे आपसी फुट के वजह से भी खिलाड़ियों के साथ कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा  अभी ऊपर उदाहरण के लिए स्ट्रेंथ लिफ्टर सुनीता के साथ हुआ |




क्या इस शोषण को रोकने के लिए हमारे शाशन प्रशाशन को कुछ नहीं करना चाहिए??? 

ये हम समझ चुके की सुनीता की कहानी से की अगर नीरज गैर मान्यता प्राप्त स्ट्रेंथ लिफिटिंग इत्यादि खेल को चुनते तो क्या होता और अब दूसरा पहलु ye है की अगर वे ताइक्वांडो जैसे ओलम्पिक खेल को चुनते तो क्या होता?? 

ताइक्वांडो जैसे ओलम्पिक खेल मे अगर कोई 13 वर्षीय नीरज जैसा खिलाड़ी आता है तो उसे पहले एक ब्लैक बेल्ट का ग्राहक बनाया जायेगा और उसके पश्चात उसे विभिन्न प्राइवेट / सो  कॉल्ड राष्ट्रीय और अंतरष्ट्रीय प्रतियोगिता मे प्रतिभाग कराया जायेगा और इसके बाद जब वह इन मायाजाल से निकल कर आगे बढ़ना चाहेगा तो संघ के पदाधिकारी उसे रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देंगे क्युकि जिस दिन क्या सही है क्या सही नहीं है सबको पता लग जायेगा उस दिन उनका खेल प्रतियोगिता व्यापार व अन्य सभी खेल सम्बंधित व्यक्तिगत स्वार्थ की चीजे समाप्त हो जाएंगी | यह  कड़वी सच्चाई है क्युकि ताइक्वांडो जैसे खेल मे प्राइवेट प्रतियोगिता की बौछार है और इन प्रतियोगिताओ मे प्रतिभागी एक अच्छी खासी फीस जमा करता है जिसमे खेल संघ के पदाधिकारियों को कमीशन मिलती है |

उत्तर प्रदेश मे पिछले 7 वर्षो से अधिक समय से चार चार उत्तर प्रदेश ताइक्वांडो संघ चल रहे है जिनमे सभी खेलो की विकास की बात करते है, खिलाड़ियों के भले की बात करते है और जब सभी लोगो से अनुरोध किया गया की खेल हित हेतु जब तक हमारे राष्ट्रीय फ़ेडरेशन का विवाद ना ख़त्म हो जाएं और जब तक विवाद रहित एक उत्तर प्रदेश ताइक्वांडो संघ की स्थापना ना हो जाएं तब तक छोटा सा आपसी समझोता करें जिसमे चारों उत्तर प्रदेश ताइक्वांडो संघ अपने अपने हिसाब से सुचारु रूप से चले पर खिलाड़ियों और खेल के भले हेतु उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ टीम बनाने हेतु सब एक हो जाएं और सब लोग मिलकर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को सर्वश्रेष्ठ माहौल और मार्गदर्शन करें पर कोई भी आगे नहीं आया |



वैसे इन लोगो को खेल हित मे आपस मे खेल हित हेतु छोटा सा समझौता करने की उम्मीद करते हुए लगातार दो महीने तक इनके सामने गिड़गिड़या गया, एक व्हाट्सप्प ग्रुप बना उत्तर प्रदेश के सभी लोग एक साथ हुए और सबने अनुरोध किया पर सारा प्रयास असफल रहा वैसे सफल भी क्यों हो आज जहाँ हमारे देश मे मानवीय भाव मे मेट्रो या बस मे सफर करते हुए जल्दी लोग जरुरत मंद को सीट देने से बचते है तो ये लोग खेल भावना मे कोई भी समझौता क्यों करें जहाँ मामला पैसे और रुतबे का है |


ये हाल उत्तर प्रदेश मे एक खेल के प्रदेश संघ का है जहाँ भारी भरकम फीस लेकर विभिन्न ऑनलाइन पूमसे ताइक्वांडो प्रतियोगिता मे टीम तो भेज दी जाएगी अपने व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करने के लिए पर ऑथेंटिक एशिया महासंघ द्वारा एशिया महाद्वीप स्तर तक की ऑनलाइन प्रतियोगिता मे टीम नहीं भेजी जाएगी जहाँ प्रतिभाग करना निशुल्क है | इसी तरह हमारे देश मे विभिन्न कई सारे खेल संघ जो ताइक्वांडो की तरह सत्ता, शासन की मार झेल रहे है, जिसको दुरुस्त करने हेतु सबसे पहले प्रशिक्षकों और खिलाड़ियों को एकजुट हो कर आवाज़ बुलंद करनी होगी और एक पारदर्शिता वाली सुव्यवस्था कायम करनी होगी |

आज के समय मे हमारे देश मे ताइक्वांडो जैसे बहुत सारे खेल है जहाँ पदाधिकारी अथवा शाशक बनने की ख्वाइस और धन अर्जित करने हेतु खेल संघो मे विवाद है | राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर की तो अलग बात जिले स्तर पर चार - पांच  संघ है और जब ऐसा माहौल होगा तो स्वाभाविक है खेल मे उत्थान की बाते कम राजनीती कर विरोधी का नुकसान करने पर ज़्यादा ध्यान रहेगा और  इसका नुकसान सिर्फ खिलाड़ियों को झेलना पड़ रहा है सिर्फ उनका खेल करियर बर्बाद हो रहा है और आज  जरुरत है की भारतीय ओलम्पिक संघ,  भारतीय खेल मंत्रालय इस पर सभी आवश्यक कड़े  कदम उठाये ताकी  हमारे देश मे विभिन्न खेलो से ढेरों नीरज चोपड़ा निकले और हम ढेरों पदक जीते ओलम्पिक मे |


देश के लिए और नीरज के लिए यह बहुत अच्छा रहा जो उन्होंने ताइक्वांडो जैसा विवादित खेल नहीं चुना क्यूंकि अगर वह ऐसा करते तो निश्चित रूप से ओलम्पिक खिलाड़ी भी नहीं बन पाते  पर आज हमें यह सोचने की जरुरत है, कुछ फैसला लेने की आवश्यकता है जिससे अगर आज को कोई नीरज चोपड़ा किसी खेल को चुने तो अगले 10 साल या उससे कम समय मे नीरज की तरह ओलम्पिक गोल्ड मेडलिस्ट जरूर बने | ये कोई ख़याली पोलाव नहीं, कोई मुंगेरी लाल का हसीन सपना नहीं क्युकि इसी देश मे ताइक्वांडो खेल मे ही एक खिलाड़ी अरुणा तंवर पैरा ओलम्पिक मे देश का प्रतिनिधित्व करने जा रही जो शायद इस वजह से संभव हो सका क्युकि उसने या उसके प्रशिक्षक ने किसी व्यक्ति विशेष के प्रति भक्ति दिखाने की जगह खेल के प्रति भक्ति दिखाई |

पैरा ओलम्पिक मे बतौर ताइक्वांडो प्रशिक्षक भारतीय दल मे उत्तर प्रदेश की ही श्रीमती संध्या भारती जा रही जिसे ना सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि सारे देश के लोगो को एक सकारात्मक रूप मे लेना चाहिए और निर्भीक होकर सच को सच और गलत को गलत कहना चाहिए तथा खेल हित मे उचित मार्ग अपनाना चाहिए क्योंकि उत्तर प्रदेश की तरह सारे देश मे ऐसे ताइक्वांडो खेल प्रशाशक भर भर के होंगे जो निशुलक एशिया ओपन मे टीम को प्रतिभाग नहीं कराएंगे पर प्राइवेट / अमान्य कहे जाने वाले प्रतियोगिता जहाँ हजारो रुपये खिलाड़ियों से ऐठना हो वहां जरूर भेजेंगे  ,  बचपन मे सभी ने प्यासे कौए की कहानी पढ़ी होगी और आज वक़्त है उस कहानी के अनुसरण करने का, जब एक कौवा कंकड़ के माध्यम से अपनी प्यास बुझा सकता है तो हम फिर भी इंसान है...... जहाँ चाह वहां राह !! 

जय हिन्द  🙏


Comments

  1. वाह , बहुत ही सानदार लेख, जमीनी हकीकत और कटु सत्य है यह ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏

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  2. Jesha ki abhi tak khel ko leke guardian our bahot log hi yeshe jo ki bolte the ki game me kuch nahi rakha hi aj jesha din agaya hi jo ki khel she hi pure desh me name roshan kiya our baki sabhi khiladio ka hosala badaya thiya thanks you Tokyo Olympic mein bhag Lene wali sabhi khiladiyon ko aap sabhi koch ko thanks 🙏

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  3. शानदार आलेख लिखा है ।। बेशक आप एक विशुद्ध पत्रकार नहीं लेकिन एक खिलाड़ी या खेल प्रशासक तो हैं ही इसलिए बेहतर समझते हैं ।। यूँ ही लिखते रहिए कभी न कभी तो हालात बदलेंगे ही... प्रयास जारी रहने चाहिए ।। पुनः इस आलेख के लिए बधाई ..💐💐

    आभार सहित ।।

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  4. Bahut Sahi question kiya hai Aapne Aur ye sachai hai Humare Desh ki.. Is Par Government ko dyan jarur dena chahiye.

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  5. कटू किन्तु परम सत्य

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  6. अत्यन्त दैनिय व व दुखद स्थिति में हैं खिलाड़ी
    वही दूसरी ओर अत्यन्त सुखद स्थिति में हैं लुटेरे व्यापारी

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